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Thursday, January 12, 2023

खुदीराम बोस पर निबंध - Essay on Khudiram Bose In Hindi

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निबंध: खुदीराम बोस (450 शब्द)

परिचय: खुदीराम बोस भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। वह अपने भारत देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के युवा क्रान्तिकारी थे। इन्होंने देश की स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। खुदीराम बोस सिर्फ 18 वर्ष की आयु में ही  हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर चढ़ गए थे।

जन्म स्थान एवं माता-पिता: खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बहुवैनी नामक गाँव, जिला मिदनापुर, पश्चिम बंगाल, भारत में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था।
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Picture: Khudiram Bodse (खुदीराम बोस)

स्वतंत्रता आन्दोलन: खुदीराम बोस बहुत ही कम उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए थे। उन्होंने अपने भारत देश को अंग्रेजों के जुल्म तथा शासन से मुक्त करानें के लिए नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े थे। स्कूल की पढ़ाई छोड़ने के बाद वे रिवोल्यूशनरी पार्टी (क्रांतिकारी दल) के सदस्य बने। उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान वंदे मातरम के पर्चे बांटने में भी अहम भूमिका निभाई थी। वह देश सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते थे।

राजद्रोह के आरोप से मुक्ति: फरवरी 1906 में मिदनापुर में एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी में ‘सोनार बांगला’ नामक प्रतियाँ खुदीराम बोस वितरित कर रहे थे। प्रतियाँ वितरित करनें के दौरान एक सिपाही उन्हें पकड़ने की कोशिश की, लेकिन खुदीराम बोस सिपाही के मुँह पर घूँसा मारकर भाग गये। कुछ समय बाद वह राजद्रोह के आरोप में पकड़े गए परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम बोस को निर्दोष मानकर बरी कर दिया गया था।

किंग्जफोर्ड पर बम फेकना: डगलस हाँलिन्सहेड किंग्सफोर्ड नाम का एक मजिस्ट्रेट (जज) था, जो भारत के क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए बहुत बदनाम था। खुदीराम बोस किंग्जफोर्ड के अत्याचार से बहूत दुखी हो गए थे, इसलिए खुदीराम बोस नें किंग्जफोर्ड को मारने की योजना बनाई। 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस ने किंग्जफोर्ड के बँगले की तरफ आ रही किंग्जफोर्ड की बग्घी (गाड़ी) समझकर उस पर जोर से बम फेंका। खुदीराम बोस नें सोचा कि किंग्सफोर्ड मारा गया लेकिन किंग्सफोर्ड इस हमले में बच गया था, क्योंकि जिस बग्घी पर बम फेंका गया था उस पर किंग्सफोर्ड नहीं बल्कि दो यूरोपियन महिलाएँ सवार/बैठी थीं और वे दोनों इस हमले में मारी गईं थी।

निधन: खुदीराम बोस ने अपना जीवन भारत देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया था। जज किंग्जफोर्ड को जान से मारनें की कोशिश और स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय रहने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया तथा उनपर कोर्ट केस चलाया गया। आखिरकार 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में उन्हें फाँसी दे दी गयी। जिस समय उन्हें फांसी दी गई उस समय उनकी उम्र मात्र 18 वर्ष थी। उनके इस बलिदान के लिए पूरा भारत देश उनका सदैव ऋणी/आभारी रहेगा।
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